न्यूज डेस्क । उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन फटने और घरों में भयंकर दरारे आने के बाद से प्रदेश के साथ देश में चिंता की नई लहर दौड़ रही है । जोशीमठ के सिंहधार वार्ड में जमीन फटने की घटनाएं धीरे धीरे बढ़ रही है । शुक्रवार शाम तक मिले आंकड़ों के अनुसार , अभी तक करीब 606 घरों में भारी दरारें आई हैं । इतना ही नहीं इलाके की कई सड़कों और अन्य मैदानों पर भारी दरारें नजर आ रहीं है । इस घटनाक्रम को लेकर ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव के कारण ज्योर्तिमठ और भगवान बदरीनाथ के शीतकालीन प्रवास स्थल को भारी नुकसान पहुंचा है। शुक्रवार की सायं को सिंहधार में स्थानीय जनता के कुलदेवता का मंदिर भी धराशायी हो गया है। इससे स्थानीय निवासियों में दहशत बढ़ गयी है। इस घटना के बाद वहां से पलायन शुरू हो गया है ।
सीएम ने हवाई सर्वेक्षण के बाद लिया मैदानी जायजा
जोशीमठ में आई आफत का जायजा लेने के लिए सीएम पुष्कर सिंह धामी शनिवार सुबह आपदाग्रस्त क्षेत्र पहुंचे । पहले उन्होंने पूरे इलाके का हवाई मुआयना किया । इसके बाद वह उन गलियों में गए जहां दरारें आई हुई हैं । उन्होंने अफसरों से सबसे पहले पीड़ित परिवारों को हर संभव मदद देने के आदेश अफसरों को दिए ।
लगातार बढ़ रही हैं दरारें
गढ़वाल के कमिश्नर का कहना है कि इलाके में लगातार दरारें बढ़ती जा रही हैं । स्थिति पर प्रशासन के साथ ही विषय विशेषज्ञों की नजर बनी हुई है । इस समय 44 परिवारों को सुरक्षित मकान से निकाला गया है । इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि पूरे घटनाक्रम पर नजर रखते हुए इसरो जारी करेगा जोशीमठ की तस्वीरें ।
जमीन फाड़कर पानी निकल रहा है
नगरपालिका के अफसरों के अनुसार , अभी स्थिति खतरनाक नजर आ रही है । कई जगह जमीन फाड़कर पानी निकल रहा है । कुछ मकान तो भूस्खलन के चलते इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि वह कभी भी गिर सकते हैं । हालांकि स्थानीय लोगों ने इस भूस्खलन का कारण इलाके में हो रहे काम को माना है । उनका कहना है कि जोशीमठ में बुलडोजर और कई मशीनें लंबे समय से चल रही हैं उसके कारण ऐसा हुआ ।
हालात के स्पष्ट कारण तलाशे जाएं - डा. विक्रम गुप्ता
इस घटनाक्रम पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डा. विक्रम गुप्ता का कहना है कि जोशीमठ के हालात पर पहले स्पष्ट कारण तलाश किए जाने चाहिए। तभी यह साफ हो सकता है कि समाधान क्या होना चाहिए। क्योंकि हिमालय के सभी गांव मलबे के ढेर पर ही बसे हैं। अंतर सिर्फ यह है कि कालांतर में मलबे के ढेर ठोस सतह का रूप ले चुके हैं। हिमालयी क्षेत्रों में किसी भी तरह के निर्माण की एक सीमा तय की जानी चाहिए। हिमालय अभी निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहा है और इसमें निरंतर भूगर्भीय हलचल हो रही है। ऐसे में पहाड़ों पर निर्माण को नियंत्रित किया जाना जरूरी है।
लंबे समय से जमीन घसने की शिकायत
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि सरकारों की अदूरदर्शिता और अनियोजित विकास कार्यों ने सनातन धर्म के शिखर स्थलों सहित पौराणिक नगरी जोशीमठ (ज्योर्तिमठ) के लाखों नागरिकों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है। लोगों का कहना है कि पिछले एक वर्ष से लगातार क्षेत्र में जमीन धंसने की शिकायतें मिल रही थी, लेकिन उन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा सबके सामने है।
1970 से भूस्खलन है जारी
वहीं इस घटनाक्रम पर प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट का कहना है कि धार्मिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जोशीमठ शहर में स्थिति आज अधिक विकट हो चली है। जोशीमठ में भूधंसाव, भूस्खलन का सिलसिला 1970 के दशक से चल रहा है। स्थिति बिगड़ रही है। जंगलों का कटान हुआ है। विभिन्न निर्माण कार्यों के दौरान पहाड़ कटान के लिए धमाके हुए हैं। कारणों की तह तक जाने के साथ ही दीर्घकालिक कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही हम सबको भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।